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ToggleIsarlat (Sargasuli Tower) Jaipur – History, Architecture, and Visitor Guide
Introduction
राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित एक भव्य ऐतिहासिक स्मारक इसरालाट, जिसे स्थानीय भाषा में सरगासूली टॉवर के नाम से भी जाना जाता है, आज भी पुराने समय की राजशाही वैभव की याद दिलाता है। यह सात मंज़िला ऊँचा टॉवर न सिर्फ़ वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है, बल्कि यह जयपुर के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय भी है।
अक्सर आमेर किला, हवा महल या सिटी पैलेस जैसी प्रसिद्ध इमारतों की चकाचौंध में यह टॉवर लोगों की नज़रों से ओझल रह जाता है, लेकिन इसकी कहानी जयपुर के गौरवशाली अतीत को समझने में एक अहम भूमिका निभाती है।

Historical Background of Jaipur
जयपुर की स्थापना सन् 1727 ई. में महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा की गई थी। यह भारत का पहला योजनाबद्ध शहर माना जाता है। उन्होंने शहर को शास्त्रीय वास्तुशास्त्र के अनुसार बसाया और इसे गुलाबी रंग से रंगवाया, जो आज भी जयपुर को “पिंक सिटी” के रूप में पहचान दिलाता है।
सवाई जय सिंह द्वितीय केवल एक शक्तिशाली शासक ही नहीं, बल्कि एक खगोलविद्, विद्वान, और कुशल प्रशासक भी थे। उनके पुत्र महाराजा ईश्वरी सिंह के समय में इसरालाट का निर्माण हुआ।
Sargasuli Tower Jaipur
Construction and Patronage
इसरालाट का निर्माण सन् 1749 ई. में महाराजा सवाई ईश्वरी सिंह द्वारा कराया गया था। इस टॉवर का निर्माण उनके अपने सौतेले भाई माधो सिंह पर विजय की स्मृति में करवाया गया था।
माधो सिंह ने ईश्वरी सिंह के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था और उन्हें हटाने के लिए कोटा और उदयपुर की सेनाओं का सहयोग प्राप्त किया। एक निर्णायक युद्ध के बाद, ईश्वरी सिंह ने विजय प्राप्त की और अपनी जीत की अमर स्मृति के रूप में इस ऊँचे टॉवर का निर्माण करवाया।
‘सरगासूली’ नाम का अर्थ
“सरगासूली” शब्द राजस्थानी बोली का है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “स्वर्ग की सीढ़ी“। यह नाम इस टॉवर की आकृति और उद्देश्य दोनों को दर्शाता है — एक ऊँचाई जो विजय और गौरव की ओर इशारा करती है, साथ ही आध्यात्मिक उन्नयन का प्रतीक भी बनती है।
Architectural Marvel of Isarlat
आकृति और ऊँचाई
यह टॉवर लगभग 140 फीट (लगभग 42 मीटर) ऊँचा है और इसकी योजना अष्टकोणीय (ऑक्टागोनल) है। इसका निर्माण चूना-पत्थर और संगमरमर से किया गया है, जो उस समय आमतौर पर प्रयुक्त सामग्री थी।
टॉवर में कुल 7 मंजिलें हैं, जो एक पतली घूमदार सीढ़ी के माध्यम से जुड़ी हुई हैं।
झरोखे और प्रकाश
प्रत्येक मंज़िल पर झरोखे बनाए गए हैं, जो न केवल प्राकृतिक प्रकाश और हवा के लिए हैं, बल्कि राजस्थानी वास्तुकला की सुंदरता को भी प्रदर्शित करते हैं। यह झरोखे जयपुर शहर के चारों ओर का दृश्य प्रदान करते हैं।
छतरी (Chhatri) का प्रयोग
टॉवर की शीर्ष पर एक छोटी छतरी (गुंबदाकार मंडप) है, जो पारंपरिक राजपूत स्थापत्य कला का एक अनिवार्य हिस्सा है। इस छतरी से पूरे जयपुर शहर का 360-डिग्री विहंगम दृश्य प्राप्त होता है।

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Cultural and Political Significance
विजय का प्रतीक
इस टॉवर का निर्माण न केवल एक व्यक्तिगत विजय की स्मृति में था, बल्कि यह शाही सत्ता की वैधता और शक्ति का प्रतीक भी था। यह जयपुर के लोगों को यह दिखाने के लिए बनाया गया था कि शाही गद्दी स्थिर और मजबूत है।
धार्मिक और आध्यात्मिक संकेत
“सरगासूली” का तात्पर्य है स्वर्ग की सीढ़ी — एक ऐसा मार्ग जो न केवल भौतिक ऊँचाई को दर्शाता है, बल्कि आत्मिक ऊँचाई और मोक्ष की ओर यात्रा का भी प्रतीक बनता है।
शहर की योजना में स्थान
इसरालाट को सिटी पैलेस के पास और त्रिपोलिया गेट के पास बनाया गया, जिससे यह दूर से भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। यह टॉवर शहर की प्रशासनिक और धार्मिक धुरी के केंद्र में स्थित था।
इतिहास की धारा में इसरालाट
ईश्वरी सिंह के बाद
दुर्भाग्यवश, महाराजा ईश्वरी सिंह का शासनकाल अधिक लंबा नहीं चला। बढ़ते आंतरिक विरोध और मराठों के आक्रमणों के कारण उन्होंने 1750 ई. में आत्महत्या कर ली।
हालाँकि, उनका यह विजय स्तंभ समय की कसौटी पर खरा उतरा और आज भी राजपूताना के शौर्य की गाथा सुनाता है।
ब्रिटिश काल
ब्रिटिश काल में इस टॉवर को अंग्रेज अधिकारियों ने दस्तावेजों में दर्ज किया, पर इसे बहुत अधिक महत्व नहीं मिला। फिर भी, कुछ संरक्षण कार्य हुए, जिससे यह संरचना स्थायित्व पा सकी।
आज़ादी के बाद
1947 के बाद जब जयपुर भारत का हिस्सा बना, तब इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में देखा जाने लगा। हालांकि हवा महल और आमेर किले के सामने इसकी प्रसिद्धि कम रही, पर स्थानीय इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं ने इसे फिर से पहचान दिलाई।
What to Know Before Visiting Sargasuli Tower (Isarlat) in Jaipur
अन्य स्मारकों से तुलना
कुतुब मीनार, दिल्ली
कुतुब मीनार और इसरालाट दोनों विजय स्तंभ हैं, परंतु कुतुब मीनार की शैली इस्लामी है जबकि इसरालाट में हिंदू और राजपूत स्थापत्य कला की झलक मिलती है।
कीर्ति स्तंभ, चित्तौड़गढ़
कीर्ति स्तंभ और इसरालाट दोनों में घूमदार सीढ़ियाँ, झरोखे, और आध्यात्मिक संकेत मिलते हैं। कीर्ति स्तंभ धार्मिक दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण है जबकि इसरालाट राजनीतिक विजय का प्रतीक है।
संरक्षण और पुनर्निर्माण
चुनौतियाँ
समय के साथ, पर्यावरणीय कारकों, प्रदूषण, और शहरीकरण ने इस स्मारक को प्रभावित किया। पत्थरों का क्षरण, झरोखों की दरारें, और सीढ़ियों का क्षय प्रमुख समस्याएँ थीं।
हालिया प्रयास
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और जयपुर नगर निगम द्वारा संरक्षण कार्य किए गए:
पारंपरिक चूना प्लास्टर से मरम्मत
झरोखों और छतरी की बहाली
सीढ़ियों की मरम्मत
रात्रि में आकर्षक प्रकाश व्यवस्था
इन प्रयासों ने इसे फिर से पर्यटन मानचित्र पर लाने में सहायता की है।
आज का इसरालाट
प्रवेश समय और टिकट
पर्यटक इसे सुबह 9:30 से शाम 4:30 बजे तक देख सकते हैं। भारतीय और विदेशी पर्यटकों के लिए नाममात्र टिकट शुल्क है।
देखने का सर्वोत्तम समय
सुबह या सूर्यास्त के समय टॉवर पर चढ़ने का अनुभव अत्यंत सुंदर होता है। चारों ओर फैला गुलाबी शहर सूरज की किरणों में चमकता है।
निकटवर्ती स्थल
सिटी पैलेस
जन्तर मंतर (विश्व धरोहर स्थल)
त्रिपोलिया बाजार
हवा महल
साहित्य और लोककथाओं में स्थान
हालाँकि सरगासूली टॉवर मुख्यधारा की फिल्मों में अधिक नहीं दिखा, पर यह कई राजस्थानी लोक गीतों, कविताओं, और यात्रा विवरणों में वर्णित है। कुछ लोकगीतों में इसे प्रतीक रूप में प्रयोग किया गया है, जहाँ स्त्रियाँ अपने योद्धा पतियों के लिए प्रतीक्षा करती थीं।
निष्कर्ष: शौर्य की चुप्पी में गूंजता इतिहास
इसरालाट केवल पत्थरों से बना एक टॉवर नहीं है। यह एक राजकीय विजय का प्रतीक, आध्यात्मिक उन्नयन का मार्ग, और वास्तुकला की सुंदरता का संगम है।
भले ही यह जयपुर के अधिक प्रसिद्ध स्थलों की चमक के पीछे छुपा रहा, पर अब धीरे-धीरे यह टॉवर अपने गौरव को पुनः प्राप्त कर रहा है। जैसे-जैसे लोग स्थानीय इतिहास में रुचि लेने लगे हैं, इसरालाट जयपुर के शौर्यपूर्ण अतीत की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में उभर रहा है।
जो भी इस टॉवर की 264 सीढ़ियाँ चढ़ता है, उसे केवल शहर का दृश्य ही नहीं मिलता, बल्कि एक इतिहास का अनुभव होता है — वह इतिहास जो सत्ता, प्रेम, आत्मबलिदान और गौरव की कहानियों से भरा है।