भारत की धरती संतों और महापुरुषों की भूमि रही है। यहाँ समय-समय पर ऐसी विभूतियों ने जन्म लिया जिन्होंने अपने त्याग, तपस्या और भक्ति से मानवता को दिशा दी। राजस्थान की इस पावन धरती पर अनेक संत-महात्मा हुए, जिनमें महासती रानाबाई हरनावा का नाम आदरपूर्वक लिया जाता है।
नागौर जिले के परबतसर तहसील के हरनावा गाँव में जन्मी राणाबाई ने न केवल भक्ति की राह दिखाई बल्कि वीरता और लोककला की धरोहर भी स्थापित की। लोग उन्हें राजस्थान की दूसरी मीरा बाई मानते हैं।
रानाबाई हरनावा: जीवनी, इतिहास, चमत्कार और भक्ति कथा
प्रस्तावना
भारत की धरती संतों और महापुरुषों की भूमि रही है। यहाँ समय-समय पर ऐसी विभूतियों ने जन्म लिया जिन्होंने अपने त्याग, तपस्या और भक्ति से मानवता को दिशा दी। राजस्थान की इस पावन धरती पर अनेक संत-महात्मा हुए, जिनमें महासती रानाबाई हरनावा का नाम आदरपूर्वक लिया जाता है। नागौर जिले के परबतसर तहसील के हरनावा गाँव में जन्मी रानाबाई ने न केवल भक्ति की राह दिखाई बल्कि वीरता और लोककला की धरोहर भी स्थापित की। लोग उन्हें राजस्थान की दूसरी मीरा बाई मानते हैं।
रानाबाई का जन्म और प्रारंभिक जीवन
रानाबाई का जन्म ईस्वी सन 1504 में हरनावा गाँव (नागौर, राजस्थान) में हुआ। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह तिथि विक्रम संवत 1561, वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) बताई जाती है। वे जाट समाज से थीं और उनके पिता का नाम जालम सिंह खिंयाला था। बचपन से ही उनमें भक्ति और साधना की गहरी लगन थी।
संत चतुरदास जी और आध्यात्मिक शिक्षा
रानाबाई को संत चतुरदास जी (खोजीजी) का शिष्यत्व प्राप्त हुआ। उनकी संगति में रानाबाई ने भक्ति मार्ग को अपनाया और कृष्ण भक्ति में लीन हो गईं। उनकी कविताएँ और पदावली आज भी राजस्थान की लोक संस्कृति में गाई जाती हैं।
रानाबाई की भक्ति पदावली
रानाबाई ने राजस्थानी भाषा में अनेक भक्ति पद लिखे। ये पद मीरा बाई के पदों की तरह ही कृष्ण प्रेम और ईश्वर भक्ति से ओत-प्रोत हैं। आज भी लोक गायक और भक्तजन इन पदों को गाते हैं और श्रद्धा से रानाबाई को याद करते हैं।
भूतों से मुकाबले की कथा
लोककथाओं के अनुसार, एक बार रानाबाई के पिता जालम सिंह खेत से लौट रहे थे। रास्ते में गेछाला तालाब पर भूतों ने उनका मार्ग रोक लिया। उन्होंने शर्त रखी कि रानाबाई का विवाह बोहरा भूत से करना होगा। जालम सिंह ने भयवश हाँ कर दी, लेकिन जब रानाबाई को यह ज्ञात हुआ, तो उन्होंने ईश्वरीय शक्ति से उन भूतों का नाश कर दिया। इसके बाद उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का प्रण लिया और केवल भक्ति का मार्ग अपनाया।
चमत्कार और युद्ध की कहानियाँ
ठाकुर राज सिंह को आशीर्वाद
एक बार मेड़तिया ठाकुर राज सिंह अहमदाबाद युद्ध के लिए जा रहे थे। उन्होंने रानाबाई से विजय का आशीर्वाद माँगा। उस समय रानाबाई गोबर से कंडे बना रही थीं। उन्होंने अपने हाथ का छापा ठाकुर की पीठ पर लगाया। वह छापा केशरी रंग का हो गया और उन्होंने विजय का आशीर्वाद दिया। ठाकुर युद्ध जीतकर लौटे, लेकिन रानाबाई का स्मरण भूल गए। जैसे ही वे गढ़ के द्वार से प्रवेश करने लगे, हाथी भीतर नहीं जा पाया। बाद में क्षमा माँगने पर सब ठीक हो गया।
मुगलों से संघर्ष
एक कथा के अनुसार, मुगल सेनापति और 500 सैनिक रानाबाई को पकड़ने आए। लेकिन रानाबाई ने अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए सेनापति का सिर धड़ से अलग कर दिया और पूरी सेना को परास्त कर दिया। यह घटना उनकी वीरता का प्रमाण है।
रानाबाई की समाधि
रानाबाई ने विक्रम संवत 1627, फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी (तेरस) को जीवित समाधि ली। हरनावा गाँव में उनका समाधि स्थल और मंदिर आज भी भक्तों का प्रमुख तीर्थ स्थान है। हर माह की शुक्ल पक्ष की तेरस को यहाँ मेला लगता है। विशेष रूप से भाद्रपद और माघ मास में भारी श्रद्धालु एकत्र होते हैं।
चमत्कारिक प्रसाद
रानाबाई मंदिर में एक अद्भुत परंपरा है। भक्तों द्वारा अर्पित नारियल की ऊपरी परत (दाढ़ी) समय-समय पर स्वतः प्रज्वलित हो जाती है। भक्त इसे रानाबाई के चमत्कार के रूप में मानते हैं।
रानाबाई और मीरा बाई की तुलना
रानाबाई को राजस्थान की दूसरी मीरा बाई कहा जाता है। दोनों कृष्ण भक्ति की साधिकाएँ थीं। दोनों ने समाज की परंपराओं को तोड़कर ईश्वर की साधना की। लोकगीतों और भक्ति पदों में दोनों का नाम अमर है।
सांस्कृतिक धरोहर और साहित्य में योगदान
इतिहासकार विजय नाहर ने अपनी पुस्तक “भक्तिमयी महासती रानाबाई हरनावां” में उनके जीवन और योगदान का विस्तृत वर्णन किया है। राजस्थान की लोक संस्कृति, भक्ति संगीत और समाज सुधार में रानाबाई का स्थान अद्वितीय है।
रानाबाई की विरासत और प्रेरणा
रानाबाई महिलाओं के लिए भक्ति, साहस और आत्मनिर्भरता का प्रतीक हैं। उनकी जीवन गाथा यह सिखाती है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति कभी नहीं हारता। आज भी राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में भक्तजन उन्हें श्रद्धा से याद करते हैं।
निष्कर्ष
रानाबाई हरनावा केवल एक संत या कवयित्री नहीं थीं, बल्कि वे भक्ति और वीरता की मिसाल थीं। उन्होंने समाज को यह संदेश दिया कि स्त्री केवल घर-गृहस्थी तक सीमित नहीं, बल्कि वह भक्ति, शक्ति और पराक्रम की मूर्ति भी हो सकती है। उनकी पदावली, चमत्कार और समाधि आज भी राजस्थान की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर हैं।